मैं भटकता बहुत हूँ..

मुझसे पीछा छुड़ाने की साजिश रची,हर दफा बात का बस बतंगड़ किया।मुझसे लड़ने झगड़ने का ढूंढा बहाना,जख़्मी मुझको ही अंदर ही अंदर किया।जाते जाते मढ़ा मेरे माथे इल्ज़ाम,कि मैं उनसे झगड़ता बहुत हूँ.. खुद के अपमान का घूंट पीकर भी मैं,टूटते रिश्ते को बस बचाता गया।अच्छा था जब तलक चुप मैं सुनता रहा,जैसे बोला तो मैं बदतमीज हो गया।करके मजबूर, उकसा के मुझको सदा,कहते है … Continue reading मैं भटकता बहुत हूँ..

आखरी ख़त

मुलाक़ातों में कुछ बातों में ही दीदार हो गयाअनजाने में मुझको कब न जाने प्यार हो गयाजो तूने कह दिया कि हो नही सकता है ये मुमकिनमैं खुद की ही नज़र में खुदका गुनहगार हो गया पता होता अगर मुझको तो इतना मैं नही गिरतातुझे पाने की चाहत में ना ही हद पार मैं करतामुझे फिरसे संभलने का अगर मौक़ा दिया होतातुझे भी भूल जाता … Continue reading आखरी ख़त

तूफ़ान..

अगर अब आना ही हो ज़िंदगी में तो तूफ़ान की तरह आना यू आते जाते झोकों से वाकिफ़ बहुत है हम.. हम वो पत्थर बन गए है ठोकरें खाकरके अब मुश्किल सा लगता है फिर से बह जाना..उन हवाओं के झोकों के साथ,जिनका आना न आनाअब कोई मायने नही रखता.. Continue reading तूफ़ान..