वो बचपन का ज़माना था, जिसमें खुशियों का खज़ाना था, चाँद को पाने की चाहत थी लेकिन, दिल तितली का दीवाना था । वो कोयल की कुहू,वो चिड़ियों का गाना, वो नदियों में,नहरों में गोते लगाना, वो बसंत की हवाएँ,वो गर्मी का मौसम, आम अमरुद के पेड़ों पर डेरा जमाना । वो रंगीबिरंगी पतंगें उड़ाना, पतंगों के पीछे मीलों भाग जाना, पतंगों सा उड़ने की चाहत थी लेकिन, जब उड़ने लगे, हुआ बचपन बेगाना । वो बारिश के पानी में ठुमके लगाना, स्कुल ना जाने का मिलता आसां बहाना, वक़्त भी रोक पाते मिट्टी के बांध अगर, रोक लेते वो बचपन,वो गुज़रा ज़माना । वो सावन के झूले,वो बचपन की मस्ती, देखने वो नज़ारा,आज आँखें तरसती, न जाने कहाँ खो गई वो बचपन की अमीरी, वो बारिश का पानी,वो काग़ज़ की कश्ती । वो मिट्टी के पत्थर के किले बनाना, शौक से गुड्डे-गुड़ियों की शादी रचाना, घड़ी दो घड़ी रुठ भी जाते अगर, भूल कर सारे शिकवे,फिर वो घुलमिल जाना । ना वजह रोने की थी,ना हँसने का बहाना, हर घड़ी मस्ती थी,था हर मौसम सुहाना । कितना प्यारा निराला था बचपन का मेला, ना 'कल' की फिकर थी,ना 'कल' का ठिकाना । वो किताबों की दुनियां में कहीं खो जाना, वो परीक्षा की घड़ियां,घर से बाहर न जाना, आज फिर याद आई हैं बाते पुरानी, वो पढ़ना पढ़ाना,वो आँसूं बहाना । वो कंचे,लगोरी,वो छुप्पन छुपाई, लूडो, सापसीढ़ी,वो चोर सिपाही, जब जब बिजली कटती थी रात में, अंताक्षरी के गानों ने महफ़िल सजाई । ना जाती धरम,ना कोई रंग था, ना मज़हब,ना सीमा,ना कोई जंग था । ना आगे जाने की होड़ थी,ना दुनिया की दौड़ थी, हर खेल में साथी थे,हर कोई संग था । छूटी वो बचपन की प्यारी सी होली, छूटी वो दिवाली,वो यारों की टोली, छूट गया वो हसीं दौर हाथ से रेत सा, वो चूरन की पुड़िया,वो सन्तरे की गोली । आज फिर मुझे मेरे गाँव की याद आई हैं, वो बचपन,वो आम की छाँव याद आई हैं, दौड़ धूप में गुज़र जाते हैं अक्सर दिन अब तो, खेलकर लौटते थे,वो 'शाम' याद आई हैं । वो शाम याद आई हैं.. © Kartik Mishra 2017 www.fb.com/karthik.mishra.5
Hard touching bro….
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Thanks bro..
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Nice yar…..
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Thanks bhau..
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