“हर गली में आज फिर रावण जला हैं”

आज की युवा पीढ़ी को राह से भटकते देर नही लगती। आज की युवा पीढ़ी दूसरों के अवगुणों को जल्दी अपना हिस्सा बना लेती हैं। प्रस्तुत कविता में मैंने रावण का उदाहरण देकर इस बात को समझाने की कोशिश की हैं. हमें कई मायनों में रावण के सद्गुणों को आत्मसात करने की जरूरत हैं। हमने रावण को हमेशा एक अहंकारी,एक क्रूर शासक के नाम से जाना,पर आज वक़्त हैं उसके अच्छे गुणों की प्रशंसा करने का..

हर शख़्स आज श्रीराम सा बनने चला हैं,
हर गली में आज फिर रावण जला हैं।

माना कि उसमें क्रोध और अहंकार था,
उसे जलाने का मानव तुझे क्या अधिकार था ?
श्रीराम की बराबरी तू क्या करेगा मानव,
मन में छल-कपट और हिंसा लिए चला हैं।

एक अंश भी प्रभु राम का तू बन न पाया,
खुद के स्वार्थपूर्ति के लिए जीवन गवांया।
चार दीवारो में ही सिमित रही तेरी जिंदगी,
तुझको क्या खबर की बाहर क्या मामला हैं।

थे अगर श्रीराम श्रेष्ठ अपनी जगह पर,
तो रावण भी था श्रेष्ठ उसकी जगह पर।
माता सीता तो थी सुरक्षित पास उसके,
पर आज पूरी विपरीत ही श्रृंखला हैं।

नारी का जीवन आज बद से बदतर हैं,
हर भेड़िये की उसपर बुरी नज़र हैं।
लाख जलालें रावण तू हर चौराहे पर,
पर क्या होगा उस "रावण" का,
जो तुझमें पला हैं।

भगवान तो तू बन न पाया,
कम से कम इंसान बन,
नारी की शक्ति जान ले तू 
इतना न नादान बन।
हैं अगर वह जगतजननी, 
तो वही महाकाली हैं,
क्रोध में आजाए तो 
महिषासुर भी जला हैं।

शौक से जला तू रावण, इसका कोई गम नही,
बस अपनी नियत साफ़ रख,इससे बड़ा धरम नही।
वाकिफ़ तो रावण भी था अपने अंजाम से,
फिर क्यों वही इतिहास तू दोहराने चला हैं।

हर गली में आज फिर रावण जला हैं..

© Kartik Mishra 2016

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